लोकसभा चुनाव की तिथि घोषित होते ही लोकतंत्र के महापर्व से पूर्व होने वाली भगदड़ प्रारंभ हो चुकी है। कई नेता सोच रहे हैं कि कौन सी पार्टी का टिकट लेकर वह चुनाव जीत सकते हैं। इसी सोच विचार में यह भगदड़ मची हुई है। सभी राजनीतिक दलों के नेता भाजपा की ओर आकर्षित हो रहे हैं। अभी कोई भी नहीं कह सकता कि यह दल बदल कितना सही होता है किस विचारधारा पर दल बदल किया जाता है पार्टी के कार्यकर्ता होने के बावजूद भी दल बदल करते हैं तो क्या वह सिर्फ अपने स्वार्थ के लिए राजनीति में आते हैं। जनता की सेवा करना तो अब एक ढोंग हो गया है। लेकिन एक बात तो निश्चित है की जो नेता दल बदल करते रहते हैं वह कभी भी एक लीडर नहीं बन पाते। वह बस एक छुट भैया नेता बनकर रह जाते हैं अपनी पार्टी में तो वह अपनी इज्जत खोते ही हैं दूसरी पार्टी में भी वह सम्मान के हकदार नहीं हो पाते। दुधारू गाय जब टल जाती है तो उसे लात मार दी जाती है। आजकल के नेताओं की यही हालत हो गई है। राजस्थान हमेशा से ही लोकतंत्र के पर्व में अग्रणी भूमिका निभाता रहा है। हालांकि 21वीं सदी के प्रारंभिक दो दशकों में यहां के मतदाता भी कंफ्यूज हो गए हैं की कौन सी सरकार राजस्थान की जनता के लिए अच्छा कार्य करेगी। यह तो कोई नहीं जानता की जो नेता दल बदल कर रहे हैं वह खुद का काम करेंगे या जनता का काम लेकिन एक बात तो निश्चित है कि इस पर्व में दो-तीन महीने गांव और शहर के लोग विश्लेषण के नाम पर ही परंतु चर्चा तो करेंगे। और एक बार चुनाव का नतीजाआया तो फिर क्या गई भैंस पानी में 5 वर्ष के लिए।